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विष्णु विनय 2 / शब्द प्रकाश / धरनीदास

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तारन अजामिल निवारने को भक्त भीर, असुर संघारन उपारन दुतरु के।
आरन-विलासी प्रभु दारन दनुज सदा, चारन सुकाम घेनु मारन मगरु के॥
वलि नृप-छारन कलंक-लंक जारन, सुदामा-रंक-भारन जो धारन पहरु के।
वारन उवारन धरनि जन वारन, अनन्द वार-पारन विहारन सगरु के॥2॥