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क्षणभंगुर जगत् (चेतावनी) / शब्द प्रकाश / धरनीदास

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गये दस अवतार जिन महिमा अपार, तारने में भवपार वारऊ न लावते।
गये तव नाथ सिध साधक समूह सुर, मुनि ऋषि योगि यति सागर सुखावते॥
गये नृप विक्रमरु भोजहू को खोज नहि, किन्हो जिन अत तिन वेर न सिरावते॥
धरनि बने न बिलखाते बिहसाते ताते, कालि चले जाते येउ साहब कहावते॥4॥