भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चेतावनी 7 / शब्द प्रकाश / धरनीदास
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:59, 21 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=धरनीदास |अनुवादक= |संग्रह=शब्द प्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
आछा जनमासा तजि पाषंड को पासा, मति राता रति माशा अंत बाजी को उड़ासा है।
चोरी परनारी मद मासा है करमफासा, धरो निज नाम आसा जो खुलासा है॥
डोलो हंसदासा मुख बोलो पिक भाषा, जहाँ जहाँ जाको आसा तहाँ तहाँ ताको वासा।
धरनी के हाँसा जग जानो धंध लासा, ढूँढ़ि देखो पीर-पासा जो तमाशे का तमाशा है॥20॥