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निज हीनता / शब्द प्रकाश / धरनीदास
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जा नो हाँन यज्ञ जाप तीरथ वरत नेम, कीरति-विहीन दीन क्रोध हिय भार है।
विषया में लपटानो निन्दक कुटिल खल, पलक न जानो प्रभु साँझहू सकार है॥
गुरुपितुकी न सेवा गीत ग्रंथ जानो नाहि, दीनो कछु दान नाहि पापको पहार है।
जुगन गिनो न जाय गुन को तो वास नाहि, गुरु-उपदेश एक धरनि अधार है॥21॥