भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
स्वविषय (गुरु जन) / शब्द प्रकाश / धरनीदास
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:05, 21 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=धरनीदास |अनुवादक= |संग्रह=शब्द प्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
प्रथमहि गुरु कायस्थ भयो जिन विद्या दीन्हो। दूजे गुरु संन्यासि पास जेहि मारग चीन्हाँ॥
तीते गुरु वैराग भाग कछु भलो जनाओ। चौथे गुरु गोविन्द साधु संगति लखि पाओ॥
धरनी धोखा मेटि गो, मिलो सनेही आपनो।
जाग्रत स्वपन सुषोपती, जत देखो तत सापनो॥2॥