Last modified on 21 जुलाई 2016, at 22:12

देह में रामायण विचार / शब्द प्रकाश / धरनीदास

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:12, 21 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=धरनीदास |अनुवादक= |संग्रह=शब्द प्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कया कनक गढ़ लंक, वंक तृष्णोदधि जानी। रावन है हंकार, मया मन्दोदरि रानी॥
रामचन्द गुरु-ज्ञान, क्षमा है लक्ष्मण सोई। मन मानो हनुमान, सत्य सीता है जोई॥
मुम्भकरन निद्राभई, भाव विभीषन लेखिया।
धरनी अंग प्रसंग करि, रामायण कहि देखिया॥11॥