भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कर्म असार / शब्द प्रकाश / धरनीदास
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:14, 21 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=धरनीदास |अनुवादक= |संग्रह=शब्द प्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
कोटि गऊ है दान, सींगि सौवर्ण मढ़ावै। गज तुरंग रथ साजि, विप्र निज कन्ध चढ़ावै॥
तहलहात लखराँव, प्रवल पोखरा खनावै। तुला तुला वै दँह, नेह करि गंग अन्हावै॥
योनि जन्मि फल पाइहै, पढ़ि पुरान पुनि रैन दिनु।
धरनी धर्म अनेक करि, मुक्ति न आतम-राम विनु॥16॥