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जतसारी / शब्द प्रकाश / धरनीदास

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132.

कर्त्ता राम चहु युगवा रेकी। पिसि लेहु कर्म केरावहु रेकी॥
किलवा गाड़ि मन गगन बबुरवा रे। जुक्ति के जुअवा मेरावहु रे.।
चितकै चउरवा दयाकै दउरवा रे.। सहजै झुकिय झिँकवा नावहु रे.॥
मोह मकरिया छोड़ाव बहुरिया रे.। साधु संघतिकै लदनिया रे.॥
जे घनहरिया बइठु जँत सरिया रे.। धरनी से धनि अति आगकर रे.॥1॥