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हर बिन वृथा धरें नर देही / संत जूड़ीराम
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हर बिन वृथा धरें नर देही।
बिन सतसंग कर्म बस डोलत नहिं पद कमल सनेही।
धत्त अधम जे जियत जगत में पशु समान हैं तेही।
धृग-धृग इनके जन्म वृथा हैं धत्त जीव जग जेही।
राम बिसार भजत जे ओरें ते नहिं पावन देही।
कोट कल्प भर परे नरक में उबरे नहिं पुनि तेही।
कर संजम हर नाम भजन को जनम सुफल कर लेही।
जूड़ीराम जान ऐसी गत मुक्त पदारथ पेही।