Last modified on 29 जुलाई 2016, at 03:26

देखो मन की कठिन मार / संत जूड़ीराम

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:26, 29 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संत जूड़ीराम |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

देखो मन की कठिन मार, संग सलौनी पाँच नार।
पाँच-पचासी पंच कीन, सुरनर मुनि को देउ दीन।
जोग भोग वन विच विहार, है अदबुद लीला यह अपार।
तब जग खेलत आय बाय, जिहि सिर लागै जो न धाय।
गति मति कोई सको रोक, तीन लोक बस भयो ओक।
भौसागर की कठिन धार, मोह लहर माया अपार।
कनक कामनी रचो खेल, खिचत न मानत तनक केल।
जिनके है निज नाम एक, सुई जन मन की गहत टेक।
जूड़ीराम गुरु ज्ञान साज, भौसागर को है जो जहाज।