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हरि संग डारि-डारि गलबहियाँ (कजली) / खड़ी बोली
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♦ रचनाकार: अज्ञात
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हरि संग डारि-डारि गल बहियाँ झूलत बरसाने की नारि।
- प्रेमानन्द मगन मतवारी सुधि बुधि सकल बिसारि।।
करि आलिंग प्रेमरस भीजत अंचल अलक उघारि।
- टूटे बोल हिंडोल उठावति रुकि-रुकि अंग संवारि।।
श्रीधर ललित जुगल छबि ऊपर डारत तन-मन वारि।
- हरि संग डाल-डाल गलबहियाँ, झूलत बरसाने की नारि।।
("कजली कौमुदी" से जिसके संग्रहकर्ता थे श्री कमलनाथ अग्रवाल)
('कविता कोश' में 'संगीत'(सम्पादक-काका हाथरसी) नामक पत्रिका के जुलाई 1945 के अंक से)