Last modified on 10 अगस्त 2016, at 07:28

हौ एत्तेक वचनियाँ नरूपिया सोचै छै / मैथिली लोकगीत

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:28, 10 अगस्त 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |भाषा=मैथिली |रचनाकार=अज्ञात |संग्रह=सलहे...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मैथिली लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

हौ एत्तेक वचनियाँ नरूपिया सोचै छै
आ जेल के घरमे दुर्गा जुमलै
अँचरा के खूंटमे चीट्ठी बन्हैय
तबेमे जबाब नरूपिया दै छै
गै सुख के चीट्ठी कोहबर दीहै
आ दुख के चीठी बौआ मोती के दीहे
भाइ सहोदर जखनी बुझतै
बान्ह खोला हमर लऽ जयतै।
आ बन्हवा खोलबाक हमरा बौआ लऽ जयतै।
हौ चौठीया लऽकऽ दुर्गा भगैय
जखनी दुर्गा हौ कोशिका लग जुमि गेल
सुखले नदीयामे हौ जल भरलै
आ छुरी फनकैय कोशिका लग मे
तखनी मैया दुर्गा कहैय
सुनिलय गै कोशिका दिल के वार्त्ता
जेहने देवता तू कहबै छै
तेहने देवता दुर्गा मैया
सुखले नदीया पार उतारि दे
सतयुग छीयै गै कलयुग अऔतै
तोरे गे नाम दुनियाँमे चलतौ
हमरा पार कोशिका जल्दी तू उतारि दियौ गै।।