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नख सिख - 4 / प्रेमघन
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कुन्दन सी दमकै द्युति देह, सुनीलम की अलकावलि जो हैं।
लाल से लाल भरे अधरामृत, दन्त सुहीरन सों सजि सोहैं॥
रन्त मई रमनी लखि कै, घन प्रेम न जो प्रकटै अस को हैं।
बाल प्रबालन सी अँगुरी, तिन मैं नख मोतिन से मन मोहैं॥