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नख सिख - 6 / प्रेमघन
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भरो जल सुन्दर रूप अनूप,
सरीरहि है सर स्वच्छ नवीन।
मृणाल भुजा त्रिबली है तरंग,
तथा चकवाक पयोधर पीन॥
सजे घन प्रेम भरी रमनी सिर,
वार सवार सिवार अहीन।
अहो यह नाचत हैं मुख पैं दृग,
ज्यों इक वारिज पै जुग मीन॥