थकी विपरीत की जीत रनै,
न सकी स्रम सों सुकुमारि अँगेज।
लियो अवलम्ब अनूपम आनन,
लाल तकीयन पैं सजी सेज॥
लगी बरसै सुखमा घन प्रेम,
मनो लरि लाख गुनो लहि तेज।
धर सिर के तर राहु को सोय,
रह्यो है कलानिधि काढ़ि कलेज॥
थकी विपरीत की जीत रनै,
न सकी स्रम सों सुकुमारि अँगेज।
लियो अवलम्ब अनूपम आनन,
लाल तकीयन पैं सजी सेज॥
लगी बरसै सुखमा घन प्रेम,
मनो लरि लाख गुनो लहि तेज।
धर सिर के तर राहु को सोय,
रह्यो है कलानिधि काढ़ि कलेज॥