Last modified on 21 अगस्त 2016, at 03:05

निष्पक्ष होना निर्जीव होना है / अशोक कुमार पाण्डेय

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:05, 21 अगस्त 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अशोक कुमार पाण्डेय |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

तुमने मेरी उंगलियाँ पकड़ कर चलना सिखाया था पिता
आभारी हूँ,पर रास्ता मैं ही चुनूंगा अपना
तुमने शब्दों का यह विस्मयकारी संसार दिया गुरुवर
आभारी हूँ, पर लिखूंगा अपना ही सच मैं

मैं उदासियों के समय में उम्मीदें गढ़ता हूँ और अकेला नहीं हूँ बिलकुल
शब्दों के सहारे बना रहा हूँ पुल इस उफनते महासागर में
हज़ारो -हज़ार हाथों में जो एक अनचीन्हा हाथ है, वह मेरा है
हज़ारो-हज़ार पैरों में जो एक धीमा पाँव है, वह मेरा है
थकान को पराजित करती आवाज़ों में एक आवाज़ मेरी भी है शामिल
और बेमक़सद कभी नहीं होती आवाज़ें...

निष्पक्ष सिर्फ पत्थर हो सकता है उसे फेंकने वाला हाथ नहीं
निष्पक्ष कागज़ हो सकता है क़लम के लिए कहाँ मुमकिन है यह?

मैं हाड़-मास का जीवित मनुष्य हूँ
इतिहास और भविष्य के इस पुल पर खड़ा नहीं गुज़ार सकता अपनी उम्र
नियति है मेरी चलना और मैं पूरी ताक़त के साथ चलता हूँ भविष्य की ओर