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घुघ्घ ऊंदहि मां नेण घूरिनि था! / अर्जुन हासिद

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घुघ्घ ऊंदहि मां नेण घूरिनि था!
केॾो चमकी पवनि था सन्नाटा!

के तसव्वुर, के ज़ल्ज़ला भुणिकनि!
दिल में आहिनि रखियल जो थांईका!

तिनि मां आहट ॿुधणु आ चाही मूं,
जे कॾहिं भी खुलिया न दरवाजा!

ढेर वारीअ जा, ॾिसु चमक तिनि जी,
पंहिंजी तहज़ीब, अक्स ही उनजा!

गं/ढि खोले, वरी बि ॻंढि ॿधइ,
केसीं काबूअ में रखंदें वाचूड़ा!

तुंहिंजी भरि में वॾा वॾा माण्हू,
मुंहिंजे भरिसां जे, से त वेचारा!

तोखे हासिद ॾिसणु वणनि था किअं,
टेॾा, बिंदरा, डिघा ही आईना!