भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
लगी यूँ झड़ी फिर ख़यालात की / राजश्री गौड़
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:34, 6 सितम्बर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजश्री गौड़ |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
लगी यूँ झड़ी फिर ख़्यालात की,
कटेगी नहीं रात बरसात की।
हँसना अकेले गवाँरा नहीं,
है चाहत हमे फिर मुलाकात की।
इशारों में तुमने ये क्या कह दिया,
बनी गुनगुनाती गज़ल रात की।
न सोचा न समझा न देखा अभी,
कसक सी है दिल में सवालात की।
क्यों जमाने से रिश्ते छुपाते रहें,
नहीं कद्र की उसने जज्बात की।
मुहब्बत तो है रौशनी रूह की,
तबस्सुम खिली चाँदनी रात की।