भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उलान्या मास ऐगे, खुदेड़ वगत / गढ़वाली

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:38, 6 सितम्बर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |रचनाकार=अज्ञात }} {{KKLokGeetBhaashaSoochi |भाषा=गढ़वाली }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

उलान्या मास ऐगे, खुदेड़ वगत,
बार रितु बौडी ऐन, बार फूल फूली गैन!
औंदौ की मुखड़ी न्याल्दू,
जांदौं की पिल्वाड़ी।
एक दाणी चौलू बोदी, मैं उमली औं,
निरमैतीण छोरी बोदी, मैं मैंत जौं!
भग्यान्यौं का भाग होला,
जौंका पीठी जौंला भाई!
मैत बोलाला, रीत जणाला!
जौं दिशौं ध्याण्यो का गोती होला मैती,
तौ दिशौं ध्याणी मैत जाली देसु!
सरापी जायान माँजी, विधाता का घर!
जनी कनी पुतरी चुली माँ जी,
एक विराली पालदी!
कुत्ता पालदो, पैरो जागा देन्दो।
केक पाली होलू माँ जी,
मैं निरासू सी फूल।

शब्दार्थ
<references/>