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सुनो / निधि सक्सेना
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तुम्हारे मणि माणक से अक्षर
उजाले की डोरियों में गूँथ कर
अपने इर्द गिर्द लपेट लिये हैं...
कि जब चाहतें बासी होंगी
इन्ही स्वर कम्पनों का स्पर्श
छंदयुक्त रखेगा मुझे...