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जीतू बगडवाल / भाग 1 / गढ़वाली लोक-गाथा

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

जीतू व शोभनू होला, गरीबा का बेटा,
माता त सुमेरा छई, दादी फ्यूँली जौसू।
दादा जी कुंजर छया, भुली<ref>छोटी बहन</ref> शोभनी छई,
जाति को पंवार छयो, जीतू अकलि गँवार,
बगूड़ी<ref>एक जगह</ref> जैक भौजी, होंई गैन बगड्वाल!
राज मानशाइन दिने, कमीणा<ref>सामन्त</ref> को जामो<ref>पद</ref>,
गौ मुंडे<ref>नीचे</ref> को सेरी<ref>खेत, धान वाला</ref> दिने, गौ मथे<ref>ऊपर</ref> को धारो<ref>पानी का स्रोत</ref>
जीतू रये दादू, मादू<ref>मस्त</ref> उदभातू<ref>उन्मत्त</ref>
राणियों कू रौसिया<ref>रसिया</ref>, रये फूल को हौंसिया।
अणव्याई<ref>अनब्याही</ref> बेटियों कू, ठाकुरमासो<ref>कर</ref> खाये,
बांजा<ref>उजाड़</ref> घटू<ref>घराट</ref> को, वैन, भग्वाड़ी<ref>भाड़ा</ref> उगाये,
ऊं बांजो<ref>बाँझ</ref> भैंस्यों को, पालो<ref>कर, दूध</ref> लिने परोठो<ref>एक बर्तन</ref>,
जीतू रये भैजी, राजौं को मुसद्दी।
बगुड़ ऐगे भैंजी, उल्या-मुल्या<ref>चौमासा</ref> मास,
तब जितेसिंह राजा, धाविड़ी<ref>आवाज</ref> लगौंद-
ओडू़<ref>और</ref> नेडू़<ref>नजदीक</ref> औंदू, मेरा भुला शोभनू
सोरा-सरीक भुला, सब सेरा सैंक लैन,
कि मलारी को सेरो हमारो-
बाँजो रैगे त, बाँजो मेरा दादू।

तू जायौदू भुला<ref>छोटा भाई</ref>, जोशी<ref>ज्योतिषी</ref> का पास,
गाड़ीक लऊ, सुदिन सुवार
सुदिन सुवार लौणा, लुंगला<ref>रोपण</ref> को दिन।
पातुड़ी की भेंट धरे, सेला चौंल पाथी<ref>एक पाथा, चार सेर</ref>,
धुलेंटी<ref>पटला</ref> की भेंट धरे, सोवन<ref>सोने</ref> को टका।
चलोगे शोभनू तब, बरमा<ref>ब्राह्मण</ref> का पास,
जाईक माथो नवौन्दो, सेवा लगौंदो
पैलगु पैलगु मेरा बरमा।
चिरंजी जजमान मेरा।
भैंर<ref>बाहर</ref> गाड़<ref>निकाली</ref> बरमा, धुलेटी<ref>पटला-पत्रा</ref> पातुड़ी,
धुलेटी पातुड़ी गाड, सुदिन सुवार।
गाडी याले बरमान, धुलेटी पातुड़ी,
देखद देखद बरमा, मुंडली<ref>सिर</ref> ढगडयोंद<ref>हिलाया</ref>,
तेरी राशि नी जूड़दो जजमान
तुमारी बतैन्दी बल, वा वैण<ref>बहन</ref> शोभनी,
शोभनी क हाथ जूड़े, लुंगला को दिन।
लुंगला को दिन, छै गते अषाढ़।
वावैण मेरी रन्दी, कठैत का गाऊं
चूला कठूड़ तै, बाँका वनगड़।
सोचदू सोचदू तब, घर ऐगे शोभनू
पौंछीगे<ref>पहुँच गया</ref> तब, जीतू का पास-
खरो मानी जदेऊ<ref>नमस्कार, जयदेव</ref>, मेरा जेठा-पाठा भैजी,
तेरी राशि नी जूड़े दिदा<ref>बड़ा भाई</ref> लुंगला<ref>रोपण</ref> को दिन।
हमारी बतैंछ<ref>बतायी</ref> भैजी, वा वैणा शोभनी
शोभनी का हात जूँडे, लुंगला को दिन।
जीतू भिभड़ैकै<ref>भड़भड़ाकर</ref> उठे तब, गए माता के पास,

हे मेरी जिया, हमारी राशि नी जूड़े, लुंगला को दिन!
मैं त जाँदू माता, शोभनी बैदौण<ref>बुलाने के लिए</ref>।
तू छई जीतू, बावरो<ref>बावला</ref> बेसुवा<ref>झक्की</ref>,
शोभनी बैदौण जालौ, तेरा भुला शोभनू।
भुला शोभनू होलू माता, बालो अलबूद<ref>अल्प बुद्धिवाला</ref>,
मैं जौलू माता, शोभनी बैदौण।
न्यूतीक बुलौलो, पूजीक पठोलो<ref>भेजना</ref>।
नी जाणू जीतू, त्वैक<ref>तुम्हें</ref> ह्वैगे असगुन,
तिला बाखरी तेरी, ठक<ref>एकदम</ref> छयू<ref>छींक मारी</ref> दी।
नि लाणी जिया<ref>माँ</ref>, त्वैन इनी छुँई<ref>बातें</ref>,
घर बोड़ी<ref>लौटकर</ref> औलो, तिला मारी खोलो।
भैर<ref>बाहर</ref> दे तू मेरो, गंगाजली जामो<ref>कपड़े</ref>,
मोडुवा<ref>सिर की</ref> मुन्डयासो<ref>पगड़ी</ref> दे दूँ, आलमी इजार
घावड्या बाँसुली दे दूँ, नौसुर मुरुली।
न जा मेरा जीतू, कपड़ो तेरो झौली<ref>झलक</ref> ह्वैन मोसी<ref>काली</ref>,
आरस्यो<ref>अर्से</ref> को पाग तेरो, ठनठन टूटे।
त्वैक तई ह्वैगे, जीतू यो असगुन!
माता की अड़ैती<ref>सीरज</ref> जीतू, एक नी माणदू,
लैरेन्द<ref>सजा-धजा</ref> पैरेन्द तब, कांठो<ref>चोटी पर</ref> मा को-सी सूरीज<ref>सूरज, चावल की मिठाई</ref>,
गाड़ को-सी माछो, सर्प को-सी बच्चा,
बाँको वीर छयो, जीतू नामी भड़,
राजौं को माण्यु छयो, रूप् को भर!

शब्दार्थ
<references/>