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तिलू रौतेली / गढ़वाली लोक-गाथा

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

ओ काँडा<ref>एक जगह</ref> को कौतिक<ref>खेल</ref> उन्यो<ref>आ गया</ref>,
ओ तिलू कौतिक जौला<ref>जाएँगे</ref>।
धका धैं धैं तिलू रौतेली धका धैं धैं।
द्वी वीर मेरा रणशूर ह्वेन,
भगतू<ref>तिलू के भाई</ref> पतर को बदलो लेक कौतिक खेलला,
धका धैं धैं तिलू रौतेली धका धैं धैं।
अहो रणशूर बाजा बजी गेन रौतेली धका धैं धैं।
बोइयों को दूध तुम रणखेतू बतावा धका धैं...।
तीलू रौंतेली ब्वादा रणसाज सजावा धका...।
ईजा<ref>माँ</ref> मैंण यू बीरु टीका लगावा, साज सजावा धका...।
मैं तीलू बोलूद जौंका भाई होला, जौकी बैण होला,
ओ रणखेतू जाला धका धैं धैं।
बल्लू<ref>सहेलियाँ</ref> पहरी तू मुल्क जाईक धाई लगादे धका...।
वीरौं की भ्रकुटी तनीगे धका...।
तील रौतेली धका धैं धैं।

ओ अब बढ़ो सलाण नाचण लाग धका...।
अब नई ज्वानी आइगे धका...।
बेलू देवकी द्वी संग चलीगै धका...।
ओ खैरागढ़ मा जुद्ध लगी गै धका...।
खडकू रौत तख मरीगे धका धैं धैं।
तोलू रौतेली धका धैं धैं।
ओ काँडा को कौतिक उरो धका...।
तिलू रौतेली तुम पुराण हथियार पुजावा धका...।
अपनी ढाल कटार तलवार सजावा धका...।
घमडू की हुड़की बजणी बैठे धका...।
ओ रणशूरसाज सजीक आगे तीतू रौतेली धका...।
दीवा को उस्टानकर याल धका...।
रण जीति घर आइक गाडूलो छत्तर रे।
धका धैं धैं तोलू रौतेली धका धैं धैं।
पहुँची गैतीलू<ref>स्थान</ref> टकोली भौन धका...।
यख विद्वा कत्यूरो मारियल धका...।
तब तीलू पहुँचीगै सल्ड महादेव।
ओ सिगनी शार्दुला धका...।
शार्दुला तीलु अब बढ़ीगै भिलण भौन।
धका धैं धैं तीलू रौतेलो धका...।
यख कख मारी कै की बढ़ोगै चौखटिया<ref>स्थान का नाम</ref> देघाट<ref>स्थान विशेष</ref> धका...।
विजय मिल पर तीलू घिरीधै धकाः,
बेल्लू देवकी रणखेतूमा यखी काम ऐन।
इतना माँ शिब्बू पोखरियाल मदद लेक आइग धका...।
जब शार्दुला लड़द लड़द पहुँची कालिंका खाल-
सराईखेत आइगै घमसाण युद्ध धका...।
सार्दुला की मार से कत्यूरा रण छोडी भागीगे धका...।
यू कत्यरौं क खन से तर्पण देईक कौंतिक खेललो धका...।
रणभूत पितरों को कख तर्पण दिऊला धका...।

यख शीब पोखरियाल तर्पण देण लग्ये धका...।
सराईखेत नाम तभी से पड़ा धका...
यो कौतिग तलवारियों को हालो धका...।
ये ताई खेलल मर्दाना मस्ताना रणबांकुर ज्वान धका...।
सरदार चला तुम रणखेत चला तुम धका...।
धका धैं धैं तिलू रौतेली धका...।
ओ रणसिघा रणभेरी, नगाड़ा बजीगै धका...।
ओ शिबू ब्वाडा तर्पण करण खैरागढ़ धका...।
अब शार्दुला पहुँची गै खैरागढ़ धका।
यह जीत कत्यूरा मारी राजुला जैरौतेली आगे बढ़ोगे...।
रणजीति सिंघनी दुबाटा मा नाणलग्ये धका...।
रामू रजवार घात पाइगै धका...।
राजूला त रणचण्डी छई अपणो काम कैकी नाम धरीगे।
कौतिका जाईक खेलणों छयो खेली याल,
याद तौं की जुग जुग रहली धका धैं धैं।
तू साक्षी रैली खाटली की देवी,
ओ तू साक्षी रैलो पंच पाल देव।
कालिका की देवी, लंगूरिया भैरो,
तड़ासर देव, अमर तीलु सिंगनी शार्दुला,
जब तक भूमि, सूरज आसमान,
तीलू रौतेली की तब तक याद रैली,
धका धैं धैं तीलू रौतेली धका धैं धैं।

शब्दार्थ
<references/>