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चन्द्रावली हरण / गढ़वाली लोक-गाथा

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

द्वारिका मा लै गैन कृष्ण घणी<ref>बड़ी</ref> सभा,
कबीर कमाल बैठ्या, नारद मुनि-रिषि।
कछड़ी<ref>सभा</ref> बैठी गैन कृष्ण का सूरदास
अंतरजामी कृष्ण को अंतरध्यान होइगे!
सुकली<ref>सफेद</ref> कोठड़ियों लगी सुतरी<ref>साफ</ref> पलंग,
सुतरी पलंग गेलुवा<ref>गद्देदार</ref> विछोणा।
तख कृष्ण बैठी छई सत्यभामा राणी,
दूध केला, छई राणी रुकमणी।
राणी रुकमणी प्रभो, इना बैन बोलदी-
तुम बतावा बांदो<ref>सुन्दरियाँ</ref>, प्रभु मैं बतौलू बैखू<ref>मर्द</ref>।
द्वारिका नारैण कृष्ण पूछण लै गैन-
बतावा रुकमणी बैखू मा बैख
तुम बतावा बैखू, मैं बतौलू बांदू।
हां बैखू मा<ref>में</ref> बैख होलू सांवलो नारैण!
मैंन बतैन बैख प्रभु, तुम बतावा बाँदू।
बांदू मा की बांद इन्दर की परी।
मैं सी रूपवंती सी न भुंच्यान<ref>भोगना</ref> ज्वानी<ref>जवानी</ref>,
सबू से रूपवंती मेरी बैण<ref>बहन</ref> चन्द्रावली।
चन्द्रगढ़ मा रंदी बैण चन्द्रावली
तैंका रूपन सूरज धुमैलो<ref>धूमिल</ref>,
रूप की बातुली<ref>बाती, ज्योति</ref> होली बाली चन्द्रावली।
तब समझलू मैं तुम रौलू को रौतूलो,
जब बेवैक<ref>ब्याह कर</ref> लाला मेरी बैणी चन्द्रा।
द्वारिका ठाकुर खरो दीलो आणो<ref>ताना</ref>।
तब मेरा नारैण कृष्ण पूछा लैगैन-

बतावा रुकमणी तुम खरो मनसूबो,
कनकैक बिवै ल्यौण तेरी बैण चन्द्रा।
तुम बणा भगवान बद्री<ref>बदरीनाथ</ref> का फेरवाल<ref>पंडित, पंडा</ref>,
तब जावा नारैण चन्द्रावली गढ़।
अपणी चाडी<ref>लिए</ref> को कृष्ण ब्रम तिलक पैरी,
कृष्ण तब बणी गेन फग्वाल।
मातमी फेग्वाल छऊँ, टीका पैन्याला चंदन।
सूणी चन्द्रान बोलण लैगे।
जा दू स्वांरा<ref>स्वारां, नाम</ref> चेली<ref>दासी</ref>, टीको लौ परसाद!
तब जांदी स्वांरा चेली फेग्वाल का पास,
तेरा हात चेली, मैं टीकू नी देन्दू!
टीको-परसाद द्यूलो राणी-बौराण्यों<ref>बहूरानी</ref>,
टीको-परसाद द्यूलो पदों का डोलौ<ref>बहुएँ</ref>।
स्वांरा चेली जांदी चन्द्रावली का पास,
नी देन्दू फेग्वाल वो टीको चन्दन।
राणी चन्द्रावली तब बोलण लै गैन:
वो फेग्वाल नी छ, वो छ द्वारिका नारैण।
द्वारिका भेना की तेरी जोई<ref>स्त्रियाँ</ref> राँड ह्वान।
तब मेरा नारैण ऐगे<ref>आ गये</ref> श्रवण<ref>सोने की</ref> द्वारिका!
बतौवा रुकमणी हैकौ मनसूबा,
कनकैक<ref>किस प्रकार</ref> बेवैक<ref>ब्याह कर</ref> ल्यौणे तुमारी वैण चन्द्रावली?
तुम धरा नारैण छोरा<ref>लड़का</ref> को भेष,
चन्द्रावली का सात तुम नौकर होई जावा।
गरीब गता<ref>दशा</ref> करे कृष्णन, चीरी<ref>फटे</ref> लत्ता<ref>कपड़े</ref>।
तब जांद कृष्ण चन्द्रावली का गढ़।
मैं गरीब छौरा छौं क्वी नौकर धन्याला।

इनू पूछद सुँवार, तू नयो छोरा छई,
तिन<ref>तुमने</ref> तनखा क्या लेण?
हजार बैठण की ल्यूलो, हजार उठण की।
इनू पूँछ सुँवार, तिन काम क्या देण?
पेन्दो<ref>दूध पीता</ref> बाछलो<ref>बछड़ा</ref> न पकड़ौं,
रोन्दो बच्चा नी थामौं।
नौकर छोरा नी यो, यो छ द्वारिका को भेना।
द्वारिका भेना, तेरी जोई रांड ह्वान।
तब कृष्ण भगवान निराश ह्वैक,
लुबड्याँदी<ref>लटका</ref> घौणी<ref>सिर</ref>, तिरछी मोणी<ref>गर्दन</ref>,
श्रवण द्वारिका लौटीक आई।
हे रुकमणी, मेरी कनी फजीती होई!
कुनकै<ref>किस प्रकार</ref> बेवैक<ref>ब्याह कर</ref> लयौण राणी चन्द्रावली?
दया ऐगे तब राणी रुकमणी,
तुम धरा विष्णु रुकमणी को रूप।
तु जावा नारैण त चन्द्रागढ़,
चन्द्रावली मा बोल्यान<ref>बोलना</ref> तुम रोइक-
तेरो भेना<ref>जीजा</ref> चन्द्रा, स्वर्गवासी ह्वैन!
आज भुली<ref>छोटी बहन</ref> चन्द्रावली तेरी दीदी राँड ह्वैगे।
दणमण<ref>टपटप</ref> आँसू धोल्यान<ref>गिराना</ref> तुम,
तोई छोड़ी भली, कुई आसरो नी मेरो।
अपणी चाड़ी<ref>लिए</ref> को भगवान धरे रुकमणी को रूप,
स्वाग<ref>सुहाग</ref> उतारे, वणी गैन रांड!
पहुँचीने भगवान चन्द्रा का भौन<ref>भवन</ref>।
छोड़दे पथेणा<ref>रोते</ref> नेतर<ref>नेत्र</ref> रांग जसा बुंद,
आज भुली चन्द्रा, मैं रांड होई गयूं।

तेरो भेना कृष्ण स्वर्गवास ह्वै गैन।
सेवा लगौंदी बैणी तैं तब चन्द्रावली,
लीगे गुप्त कोठड्यों सुतरो<ref>साफ</ref> पलंग।
गेलम<ref>गद्देदार</ref> बिछौणा, सुकला भौन।
रातुड़ी<ref>रात</ref> समै<ref>समय</ref> होय संझा की बेला,
होई गये देवतौं की देवा<ref>दीपदान</ref> देन्दी बगत।
मेवा मिष्टान भोजन खलौंदी वा,
सेई गैन तब कृष्ण भगवान।
चन्द्रावली वीं रात नींद नी आई,
देखदी रै वा रुकमणी बैणी।
तबरेक<ref>तभी</ref> वीं को ढक्याण<ref>ओढ़ना</ref> फरके-
ढबरियाली<ref>पुष्ट</ref> पीठ देखी वीन कंकरियालो<ref>चौड़ा, चमकता</ref> माथो,
जजरियालो<ref>खुरदरा</ref> गात देखे नौन्याली आतमा।
देवी चन्द्रावली का मन सुभा<ref>शक</ref> पड़ीगे।
यात होली आतमा बैख को,
देवी चन्द्रावलीन सर्सूं को रूप धरे।
आफू तब कृष्ण भौंर रूप होइगे।
चन्द्रावली न सर्सू<ref>खटमल</ref> को रूप छोड़े,
पोथला<ref>पक्षी</ref> को रूप धरे।
अगाड़ी<ref>आगे</ref> पोथली भागदे, पिछाड़ी द्वारिका नारैण भौंर<ref>भौंरा</ref>!
चन्द्रावली पौछीगे<ref>पहुँच गयी</ref> नारैण जमुनी<ref>यमुना</ref> छाल<ref>किनारे</ref>,
चन्द्रावली बणी गए पाणी की माछी,
कृष्णन तबारे ही ओद<ref>मछियारा</ref> को रूप धरियाले।
हे कृष्ण मच्छी पकड़ी लैगीन छाला।
तब भगवान प्रकट होई गैन,
मोर मुकुट पैरे, गाडे<ref>निकाली</ref> मोहन मुरली।
देवी चन्द्रावली देखदी ही रै गए।
तब जंदेऊ<ref>जयदेव, नमस्कार</ref> लगौंदी स्या-
अपण भेना कृष्ण।
तब सजे भगवान औंला<ref>आँवला</ref> सरी डोला।
पंचनाम देवता ऐन, देवी पार्वती ऐन,
कुन्ती, द्रोपदी मांगल गांदी!

शब्दार्थ
<references/>