शब्दों के ताने बाने में
कुशलता से बुनी गयी वेदना
सहानुभूति / श्रद्धा / प्रेम / क्रांति और बदलाव
उफ़ मानो उपज आये हों
अंतडियो में
नुकीले कई दांत...
कुतरते हुए दीवारे
आखिर चुन ही डालेंगे जरूर
हमारी सम्पूर्ण मज्जा भी
एक न एक दिन...
फिर पहचाने जा सकेंगे सहज ही
खोखली हड्डियों वाले
खडखडाते शरीर दूर ही से...
और हो न हो
वह दिन आज के मुकाबले
कहीं सुन्दर और बेहतर होगा!!
{शब्दों और व्यवहार के फासले से क्षुब्ध कविता}