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हे रे छौड़ा कहा गेलें / रामधारी सिंह 'काव्यतीर्थ'

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हे रे छौड़ा कहा गेलें
काम धंधा तोंय कुच्छु नै करलें
बकरिया मेंमैत्हैं रहलै
गैया डकरत्हैं रहलै
बच्चा बुतरू कान्तहें रहलै। हे रे...
चार वेरितोंय खायलें मांगै छैं
ताशोॅ मंे बेहाल रहै छैं
बीड़ी, सिगरेट तोहीं पियै छै
मटरगश्ती करत्हें रहलें। हे रे...
बरतुहार आवै छै भड़की जाय छौ
रूप रंगोॅ पर नैहियें रीझै छौ
गुणवान लड़का खोजै छै
से तेॅ तोंय गमाइये देलें। हे रे...
बापें दिन-रात काम करै छौ
गाँव घरोॅ में नाम करै छौ
नेता अफसर भी आवै छौ
तोंय नै आपनों परिचय करलें। हे रे...
बापोॅ के गुजरला पर तोंय पछतैवे
द्वारि-द्वारि तोंय छुछुवैवे
कोय नै तोरोॅ बात सुनतौ
सबटा तोरोॅ काम बिगड़तौ
है बातोॅ केॅ मनों में धरि ले। हे रे...