भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मानस-ताल / शिवनारायण / अमरेन्द्र

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:37, 27 सितम्बर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शिवनारायण |अनुवादक=अमरेन्द्र |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हमरोॅ असकरोॅ मोॅन
तोरोॅ प्रतीक्षा में
जानेॅ तेॅ कहिया सें
अनगिनत सपना बुनी रहलोॅ छै।
तारा के पार सरंग के एकान्त
हमरोॅ भीतर रही-रही केॅ
जानेॅ तेॅ कोॅन अस्थोॅ केॅ
बाँह पसारी हसोती रहलोॅ छै,
हम्में की जानौं, ई सब व्यापारोॅ केॅ
गोरैया के ई चुप-चुप मनुहारों केॅ
दूर मंदिरोॅ के मुन्हा सें झांकतेॅ
मेह के साँवरी चित्रकारी केॅ!

बस, एतनाहै टा ज्ञान
कि जबेॅ सरङगोॅ में मेघ घिरतै
चारो दिश छटका छिटकतै
तबेॅ चुपके सें
हमरोॅ मन के मानसरोवर में
तहूं रसवर्षा करी
होने सरस होय जैभौ।