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तोरोॅ लेली / शिवनारायण / अमरेन्द्र

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मीत, तोरोॅ दुख केॅ
आबेॅ तह तक जानी गेलोॅ छियौं।

दुख ओकरा ओतना नै सतावै छै
जेकरोॅ पास कुछुवो नै हुऐ छै
मतर जेकरों तरहत्थी में
सौंसे सरंग उगलोॅ रहै छै
आरो ऊ हठासिये डूबी जाय
कोय काल के सरोवर में
तेॅ ओकरोॅ दुख
सैंसे जिनगी भर टीसै छै
बार-बार, सद्दोखिन
तहूं यहा कालदंशोॅ सें
खण्डित होलोॅ जाय रहलोॅ छौ नी!

आंग साथें जब मनो
कत्तेॅ-कत्ते खरोचोॅ सें चोटैलोॅ
किस्तोॅ में टूटै छै
तेॅ जिनगी के सब्भे ठो किंछा
आरो सुख के पूरा-अधूरा कोण
बेरथ बनी बिखरी जाय छै
तोरा तेॅ सब मालूम छेलौं
तबेॅ कैन्हें तिली-तिली गलेॅ देलौ
मनोॅ के
किंछा सिनी केॅ
आशा-तृष्णा केॅ
मीत, तोरोॅ दुख खूब छुआँवै छीं
अमावश्या के करिया रातोॅ रं।

मजकि मीत
बिहानो तेॅ
ओतन्हैं उजरोॅ होय छै
हंसोॅ के पाँखे नाँखि
भोरकोॅ रोॅ कोखी सें
तेजस्वी किरिण जे जनमतै!
हौं मीत। तोरहे लेली
बस तोरहे लेली!