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माक / मोहन गेहाणी

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दरियुनि जे शीशनि ते
माक
राह तकीन्दे रात
धुंधियल अखियूं
कंहिं नारि जूं!

दरियुनि जे शीशनि ते
माक
प्रभात वेले
सनान बाद
छंडियल वारनि जूं
फींगूं!

दरियुनि जे शीशनि ते
माक
पोर्हियति जे
पघिरियल जिस्म ते
सूंहं!
दरियुनि जे शीशनि ते
माक
कंहिं ग़रीबि जे
गरम साह जो
निशानु!