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मायूसी / गोपाल ठकुर

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मुंहिंजू चाहतूं
कॾहिँ कॾहिँ
अहिड़ियुनि हालतुनि वसि रहनि
लॻन्दो अथमि
धोॿीअ जे कपड़नि जियां
कुटिजी सटिजी रहियो आहियां
पासा कुंडूं ऐं विचु
पूरे जो पूरो
तार तार थी
खुसी वियो आहियां
पोइ बि जिन्दु आज़ाद नथी थिए
वरी, उस में
नोड़ीअ ते उछिलायो थो वञां
सुकण लाइ
वरी वरी इस्तइमाल लाइ
हिन
न ख़तम थीन्दड़ दुहराव लाइ
बाहि सां साड़ण
तेज़ाब सां जलाइण
या ऊचाईअ तां केराए
नष्ट करण जी इजाज़त न आहे।