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विश्वासु ऐं सरीरु / गोपाल ठकुर

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भरोसो ॿांहुंनि जो न
विश्वास जो थीन्दो आहे
ज़िन्दगी जीअण जो मौक़ो
पेरनि खां मथे
गले ताईं चढ़न्दो
महसूस कयो अथमि
ख़ुशियुनि पूरो सरीरु
हेठि लही
पेरनि खे छुही वरितो
लगुमि त उहा सघ बणिजी
ज़रूर ज़िंदगीअ जूं बाक़ी
मंज़िलूं तइ कराईन्दी
पर जॾहिं

राह वेन्दे
थाॿो खाइबो आहे
विश्वासु, जो
हिन सरीर जो हिस्सो थी
पलियलु हून्दो आहे
सरीर खे ई
केराए छॾीन्दो आहे।