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नन्ढी कविता / वेढ़ो 'रफ़ीक़'
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शैतान खे सुर्ग में भिटिकन्दो ॾिसी
इंदुरु ॾमिरियो
चयाईंः
ऐ दुष्ट! तुंहिंजी एतिरी मजाल
हिते इंद्रप्रस्त में आयो आहीं?
शैतान झुकाए वराणियो:
महाराज, माफ़ कजो-
मां भुलियो नाहियां
हिति रोज़गारु ॻोल्हण आयो आहियां।
रोज़गारु ऐं हिति?
इंद्र आसण तां उथन्दे पुछियो।
‘हा साईं, मृत्यु लोक में
इसान मूंखां मुंहिंजा
सभु हुनर खसे वरिता आहिनि
अजुकल्ह मां बेरोज़गार आहियां।’