मैं तुमें समसान तक लै जाऊँगी,
सच तुमें आँखिन ते मैं दिखवाऊँगी...
ऐसी सच्चाई लिखी है राख पै,
खुद पढौगे मैं कहा पढ़वाऊँगी...
श्याम मुख हों या कि हों कर्पूर मुख,
जे ई सबकौ अंत है समझाऊँगी...
देह मुर्दा, आग में जर जायगी
कष्ट काया कौ कहाँ कह पाऊँगी...
यईं धरे रह जांगे, घर और जमीन,
सच कहूँ तौ काहे पै इतराऊँगी...