भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रूह / हरूमल सदारंगाणी ‘ख़ादिम’
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:36, 8 अक्टूबर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरूमल सदारंगाणी 'ख़ादिम' |अनुवादक...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
हर चीज़ में
हर हंधि
थो ॼाणां सभु कुझ
मां अज़ली
मां आब्दी
मां सभ जो रूह...
मादी जे हुजां
त मूंखे मारे कोई
मां
ॼाओ ई नाहियां
त
मरी किअं सघंदुसि?