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ए अमड़ि! / हरूमल सदारंगाणी ‘ख़ादिम’

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तूं हुते आहीं
मां हिते
विच में
आहि दीवार हिक
उताहीं खॼियल
जिअरे
जॻ में
टपणु... जा आहि महाल
न मूंखे थी
ॿुधी सघीं
न ॾिसी
न अची ई लही सघीं सुधि-सार
तो बिना
याद तुंहिंजीअ में
किअं थो गु़ज़रे समो
धणी ॼाणे...

दिल उदास आहि
निंड नेणें नाहि
चैतरफ़ आहि ॿाट सन्नाटो

काश दीवार खे हुजे को दर!