भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भाजू भॻवान / हरूमल सदारंगाणी ‘ख़ादिम’
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:48, 8 अक्टूबर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरूमल सदारंगाणी 'ख़ादिम' |अनुवादक...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
अखिबूट करे
पंहिंजी कमीअ-बेशीअ ते
बे-न्याउ न थी
जुल्म न करि
खुद ॾे ॾिसु
आखर में
कंहिं साणु थो भेटीं तूं पाण?
आहेई ॼाण
कहिड़ी आ तो में काणि?
अचु
वेहु
असां वटि
हिति
के चार घड़ियूं
लहु पंहिंजी ख़बर
हद-तख़लीअ खे छॾि
रहु हर्गिज़ न परे
हर हर नकरे कोशिश
हिअं
रात जे वक्ति
फूकूं ॾेई विसाइ
कमरे जी बत्ती
इसरार न करि
भाजू भॻवान न थी।