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तसव्वुर का नशा गहरा हुआ है / महावीर उत्तरांचली
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तसव्वुर का नशा गहरा हुआ है
दिवाना बिन पिए ही झूमता है
गुज़र अब साथ भी मुमकिन कहाँ था
मैं उसको वो मुझे पहचानता है
गिरी बिजली नशेमन पर हमारे
न रोया कोई कैसा हादिसा है
बलन्दी नाचती है सर पे चढ़के
कहाँ वो मेरी जानिब देखता है
जिसे कल ग़ैर समझे थे वही अब
रगे-जां में हमारी आ बसा है