दोहा / भाग 1 / महावीर उत्तरांचली
ग़ज़ल कहूँ तो मैं असद, मुझमे बसते मीर
दोहा जब कहने लगूँ, मुझमे संत कबीर।1।
युग बदले, राजा गए, गए अनेकों वीर
अजर-अमर है आज भी, लेकिन संत कबीर।2।
ध्वज वाहक मैं शब्द का, हरूँ हिया की पीर
ऊँचे सुर में गा रहा, मुझमे संत कबीर।3।
हृदय तलक पहुंचे नहीं, मित्रों के उद्गार
सब मतलब के यार थे, किये पीठ पर वार।4।
दादा-दादी सोचते, यह कैसा बदलाव
टीवी इन्टरनेट से, बंटी को है चाव।5।
पूंजीवादी दौर में, बिखर गया देहात
बद से बद्तर हो रहे, निर्धन के हालात।6।
काँधे पर बेताल-सा, बोझ उठाये रोज़
प्रश्नोत्तर से जूझते, नए अर्थ तू खोज।7।
विक्रम तेरे सामने, वक़्त बना बेताल
प्रश्नोत्तर के द्वन्द्व में, जीवन हुआ निढाल।8।
विक्रम-विक्रम बोलते, मज़ा लेत बेताल
काँधे पर लाधे हुए, बदल गए सुरताल।9।
एक दिवस बेताल पर, होगी मेरी जीत
विक्रम की यह सोचते, उम्र गई है बीत।10।