भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हिचकियों ने कल सताया देर तक / नकुल गौतम

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:50, 13 अक्टूबर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नकुल गौतम |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGhazal...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ज़ुल्म मुझ पर उसने ढाया देर तक
हिचकियों ने कल सताया देर तक

बाग़ में ताज़ा कली को देख कर
एक भँवरा गुनगुनाया देर तक

कल अमावस हो गयी पूनम हुज़ूर
चाँद छत पर मुस्कुराया देर तक

मोर ने अंगड़ाइयाँ जब खुल के लीं
"मेघ ने मल्हार गाया देर तक"

कल तेरी तसवीर से बातें हुईं
हालेदिल मैंने सुनाया देर तक

ख़्वाब में कल भी वो आये देर से
सब्र मेरा आज़माया देर तक

याद रखने की हिदायत दे गया
लौट कर जो ख़ुद न आया देर तक