पांचमोॅ सर्ग / कैकसी / कनक लाल चौधरी 'कणीक'
पांचमोॅ सर्ग
हिरणमयी तट जे सपाट चौरस जमीन ठो छेलै
कुटिया सें सटले ही हौ बड़का आश्रम बनि गेलै
ओकरा में पाँचो बहिनां केॅ अलगे कक्ष ठो बनैलै
बाँकी ठो विश्रवा मुनि आरो सभै सुतोॅ लेॅ रहलै
होम, यज्ञ आरो जाप के खातिर साविक कुटिया रहलै
कुटिया के ही एक तरफ गुरूकुल भी निर्मित भेलै
दशाननों के साथ कुंभकरण मुनि कक्ष में रहलै
खर दूषण के साथ त्रिसिरा अलगे कक्ष ठहरलै
विभीषणें कोय कक्ष नैं लैकेॅ सेवक रूप बनैलकै
बाँकी तीनों बेटीं आपनी माय के संगत पैलकै
कैकसी कुल के भण्डा फुटथैं मुनी जीं है मानलकै
सब सुत केॅ निज कुल केॅ जानी दीक्षित लेॅ ठानलकै
मातृपक्ष सें दूर रही केॅ पितृ पक्ष अपनाबै
यै उद्देश्य सें मुनिं जीं सुत केॅ रंङ-ढंग सिखलावै
बहुत काल धरि मुनि के संगें शिक्षा सुत सभ पावै
पितृभक्ति के साथें ही वैदिक शिक्षा अपनावै
दशाननों केॅ कैकसी सें कुछ दूरि बढैतें देखी
मातृ भक्ति सें बढ़ी-ढ़ी के पितृ भक्ति के लेखी
माल्यवान भेलै चिन्तित हौ कैकसी लग फिन गेलै
बोललै जथि के रहै योजना ही कारज पिछुवैलै
कोइयो विधि से दशाननोॅ केॅ अपनां पल्ला लानें
देहेॅ तोरोॅ उपलब्धि होतौ हौ मन्तर तों जाने
नखरा करि-करि मुनी फाँसले तोहें खुब्बे जान्है
आवेॅ समय हौ आवी गेलौ अवसर तों पहिचान्हैं
दशाननोॅ पर डोर लगाय केॅ आपनों दिश लै आवें
केन्हौं केॅ मुनी के लगाव सें ओकरा दूर भगावंे
माल्यवान के बात सुनी केॅ कैकसी बोलली कक्का
है कामोॅ केॅ चुटकीं करबै हमरोॅ वादा पक्का
है कहि केॅ हौ गुरुकुल गेली जहाँ विश्रवा छेलै
मुनी जी सें फिन बोलेॅ लागली कैन्हें है रंङ भेलै
बेटा हम्में जन्मैलां कत्तेॅ विधिं कत्तेॅ जत्नें
कत्तेॅ प्यार-दुलार देलियै हमरोॅ हम बस एतने?
मगर जबेॅ होलै किशोर तेॅ प्यार तोहें लौ सभटा
माय के वास्तें नहीं छोड़ल्हौ बेटा प्यार कनौटा
कैकसी भृकुठी टेॅढ़ोॅ लखि, मुनि नरम तुरंते भेलै
पिता ईशारा पैथैं ही सुत मातृ कक्ष तक बढ़लै
मातृ कक्ष में कुछ अनजानोॅ केॅ सबने देखलकै
कैकसीं आबी सभै कुमारोॅ केॅ फिन परिचय देलकै
हिनी परनानी तोरा सभ केॅ नाम छेकै सुकेशी
रहै कभी रानी लंका के चलती तखनी वेसी
तीन टा नाना परनानी ने जनम देलकै लंकां
तखनीं तोरोॅ परनाना के सगरो बाजै डंका
फिनूं कैकसीं ही किस्सा सब सभ केॅ बतैनें गेली
लंक गॅवाय केॅ मुनि आश्रम तक केना-केनां हौ अैली
माल्यवान पर करी इशारा हिनियें बड़का नाना
हिनकोॅ जे उद्देश्य छेकै हम्मूं चाहौं हौ पाना
एक विभीषण केॅ छोड़ी पाँचों ने सहमति देलके
वै उद्देश्य पुरावै लेली सबने किरिया खैलकै
किरिया खाय दशानन बोललै शिक्षा सबटा पैलां
वेद-शास्त्र, रीति-नीति से हमरा सभे अघैलां
हमरा सभ ब्रह्मा वसंज अबे तुरत तपोॅ लेॅ जाबौं
घोर तपस्या करि विधि सें मनवांछित वर केॅ पाबौं
मन में करि संकल्प सभैं फिन पिता-गुरु लग आबै
तप करला के बात कही हुनखौ सें आज्ञां पाबै
मातु पिता-गुरू चरण लागि फिन आशिष सबसें पाय
माल्यवान सुमाली साथें चलि पड़लै छवो भाय
नाना द्वय सें शिक्षा लै संस्कार राक्षसी पाबै
फिन दुर्लभ वर पावै खातिर घोर तपोॅ लेॅ जाबै
विधि प्रशन्न करि मनवांछित दुर्लभ वर सभ्भैं पैलकै
फिन नाना नें संग रही रण कौसल सबकेॅ सिखैलकै
वर पावी रण कौशल सीखी नाना संग जब अैलै
सबने अपनोॅ उपलब्धि फिनु माय सें बोलेॅ लागलै
दशाननें उपलब्धि बताबै अपनोॅ छाती तानी
नर वानर केॅ छोड़ी होलां अजर अमर बरदानी
कैकसी होय प्रशन्न दशानन केॅ फिन गलां लगाबै
कुंभकरण के वरदानोॅ से कटि-कटि बिस्मय पाबै
ठीक तखनियें आश्रम लग नभ में इक शोर पसरलै
जगमग दिव्य विमान एक, कुटिया नगीच मंे अैलै
लंकेश्वर कुबेर उतरी केॅ कुटिया तरफें आबै
पद छूवी विश्रवा मुनि के पितु आशीष वें पाबै
ढे़र सिनी अनजान देखि केॅ अकचकाय पितु बूझै
है सभ के... कथी लेॅ यहाँ पर हमरा तेॅ नैं सूझै
ऋषि नें एकांएकी सभै के पुत्र केॅ परिचय देलकै
सब सतमाय देखाय कुबेर केॅ सब सतभाय चिन्हैलकै
पिता सहित सब माय भाय केॅ धोॅन बाँटि केॅ ढेर
चढ़ि पुष्पक विमान फिनू बैठी उड़ि चल गेलै कुबेर