नौमोॅ सर्ग / कैकसी / कनक लाल चौधरी 'कणीक'
नौमोॅ सर्ग
शुक्राचार्य पहुँचथैं यज्ञ के आयोजन हुवेॅ लागलै
कोॅन यज्ञ कखनी होतै है रूप रेख बनेॅ लागलै
बोललै शुक्र शक्तिवर्धन ले अग्निष्टोम जरूरी
वै यज्ञोॅ के पूरन होथैं बहू सुवर्नक जारी
माहेश्वर आरो अश्वमेघ के सबसें अन्तिम घेरा
यै चारो के पूरन होथै शक्ति मिलतै पूरा
असुर रीति से विधि विधान सें यज्ञ शुरू होय गेलै
एक यज्ञ के पूरन होथैं फिन दोसरोॅ भी भेलै
यज्ञ आरो शक्ति पूजन में लगलै पूरे साल
असुर शक्ति के बर्धन देखी सुरगण होलै बेहाल
होथैं यज्ञ सम्पन्न तबेॅ फिन लगलै इक दरबार
धरा-पाताल सें राजा जुटलै, जेकरा सूझै हार
अपनो सेना रावण केॅ दै बाँटै वै सभ यारी
सभा में फिन पारित होलै दिग्विजय केरोॅ तैयारी
धरा लोक के एन्हों राजा जौनें हार नै मानै
रावन के ललकर करि ओकरा रणक्षेत्र में आनै
कैकसी आरेा गुरु शुक्र ने दै देलकै आशीष
बड़का सेना साथ में लेनें चलि पड़लै दशशीष
सबसें पहिनें मार्ग में मिललै कौशल पति अन्वरण्य
प्रजा के पालन सदाचार करि मानै निज केॅ धन्य
सौंसे अयोध्या वासी के मन राजा छैलोॅ छेलै
यै लेली सेना केअलावें प्रजा युद्धरत भेलै
जैसंे-जैसें दै रावण ने युद्धोॅ के ललकार
तैसें-तैसें राजा ने दै धनुषोॅ के टंकार
है रंङ जबेॅ समीप होलै तेॅ दोनों युद्ध में कूदै
एकें दोसरा के सेना के रणक्षेत्रों में रौंदै
अन्वरण्य के धनुटंकरे असुर सेनापति भागै
वीर प्रहरत के हार देखि शुक, सारण मारीच लागै
सेनापति आरो प्रमुख सेनानी के देखी रण हार
रावण ने अनुरण्य पेॅ साधै घातक एक प्रहार
वै प्रहारें कौशलपति गिरलै देखी अपनोॅ अन्त
बोललै रावण कानें खोसें हमरोॅ शाप तुरन्त
तोहें खुद के वली समझले हौ हम्हूं सोचलियै
मगर काल सबसें बली छै इखनी हम्में बुझलियै
तोरा में हौदम नैं कटियो जे तों हमरा मारें
काल बड़ोॅ बलवान छै रावण ओकरा तों स्वीकारें
हमरा कुल में दीर्घ काल धरि रामें पैदा लेतौ
अहंकार तोड़ी केॅ तोरोॅ सौसे कुल केॅ नसैतौ
है कही अन्वरण्य मरलै तेॅ रावण चिन्तित भेलै
नर-वानर केॅ छोड़ि अमरता वर पाबै पछतैलै
अन्वरण्य सम न्यायप्रिय परतापी राजा मरैथैं
धरती के बांकी राजा सभ भागै रावण अैथैं
उरीरबीज के राजा मरुत जे यज्ञ करै में छेलै
रावण के ललकार तखनियै ओकरा कानें अैलै
वै यज्ञोॅ में भाग लै खातिर देव प्रमुख नेताबै
यज्ञ-मंड़प में बैठि देवता यज्ञ-अंश केॅ पाबै
रावण के ललकार देखथैं सभ टा देव नुकैलै
इन्द्र मोर यमराज ठो कौआ वरुण हंस वनि गेलै
गिरगिट बनी कुबेर तखनियें एक पेड़ पर गेलै
वै पेड़ोॅ पर बांकी देवगण पंछी रुपें समैलै
यज्ञ पुरोहित ऋषि संवर्त ने अतिशय विश्मय पाबै
कैन्हैं रावण केरोॅ डरों सें देव-श्रेष्ठ छिप जावै
विघ्न देखि यज्ञोॅ के आहुति देना होले बन्द
मंत्र के रुकथैं धधक आग भी पड़ि गेलै फिन मन्द
तब तालुक रावण के सेना यज्ञस्थल तक अैलै
तबेॅ मरुत धनु-शस्त्र उठावे लेॅ उद्यत होय गेलै
नृप केॅ शस्त्र उठैतें देखी ऋषि संवर्ते टोकै
यज्ञ अधूरे देखि पुरोहितें युद्ध करै लेॅ रोकै
बोललै यज्ञ के दीक्षा लैकेॅ लेल्हौ तों संकल्प
यज्ञ पुराना छौं तोरा तो नष्ठौ नैं क्षण अल्प
यज्ञ पुरोहित के सुनि राजां आपनोॅ कवच उतारै
धनुष-वाण त्यागी केॅ हौ फिन यज्ञ करै के विचारै
राजा मरुत पराजित जानी रावण आगू बढ़लै
आखिर में यमपुरी पहुँचि हौ युद्ध करै लेॅ अड़लै
रावण आरो यमोॅ के बीच युद्ध होलै बड़िभारी
बहुत काल धरि दोन्हूं मध्यें युद्ध ठो रहलै जारी
धर्मराज कखनूं पड़ै भारी कखनूं पड़ै दशानन
मल्ल युद्ध में दोनों लिपटै घुंस्सा चलै दनादन
युद्ध में निर्णय नैं देखी यम काल दण्ड लै धाबै
वही समय ब्रम्हा जी प्रगटी यम के सम्मुख आबै
है तों की करि रहोॅ वैवस्वत रुको, रुको है बोलै
अपनोॅ कमंडल माला धरि ब्रह्मा जीं मुख केॅ खोलै
काल दण्ड, तोहेॅ आरो रावण सभ टा रचना हमरे
जखनी जेकरोॅ काल ठो पुरतै काल दण्ड तबेॅ सपरै
मगर छोॅ तों दोनों वरदानी अजर अमरता बाला
कालदण्ड सें नैं केकरो भी पड़ेॅ नै पारेॅ पाला
यै लेली तों दण्ड समेंटो खुद केॅ पराजित मानोॅ
रावण केॅ वरदान छे टटका तोंहे बासी जानोॅ
ब्रह्मा के समझैला पर यम्मोॅ के चेतना आबै
यमलोकोॅ पर विजय पताका रावण के फहिराबै