सोलमोॅ सर्ग / कैकसी / कनक लाल चौधरी 'कणीक'
सोलमोॅ सर्ग
माय नियंत्रण हटथैं ही सुत अति निरंकुश भेलै
काम-वासना क्रोध अहं मनमानी पर हौ उतरलै
भोग विलास में रत होय केॅ रावणें क्रूरता लाबै
ऋषि मुनि पर कर थोंपी, यज्ञोॅ केॅ ध्वंस कराबै
माल्यवान विभीषण साथें, कैकसी शरण में आबै
मगर कैकसी चुप्पी साधी दखल से निज केॅ बचाबै
कभी-कभी सपनां में रावणे बेदवती के देखै
ओकरोॅ रूप-रंग धरती पर हरदम्में वें लेखै
मतर कहीं भी ओकरा माफ़िक बाला कोय नै भावै
शुक सारण ने कत्तोॅ खोजै ओन्हों कहीं नै पावै
सुर्पनखां जब नाँक कटैनें रावण भाय लग आबै
नककट्टी के कथा साथ खर-दूषण मरण सुनाबै
रामलखन सिय बात सुनी रावण के हिय फिन डोलै
गुप्त रूप सें पता लगाबै, शुक सारण सें बोलै
शुक सारण ने पता करी सीता के हुलिया बताबै
रावण के बतलैलोॅ बेदवती रंङ हुलिया पाबै
बहिन सूपर्नखा खर-दूषण के सभटा बात बिसारी
सीता के खूबसूरत चेहरा, ओकरा पड़लै भारी
काम मोह में पड़ि रावण सीता पावै पिछु लागै
केनां केॅ फाँसौं सिया-सुन्दरी यै पीछु सरपट भागै
आनन-फानन जाय मारीच लग ओकरा मंत्र सिखाबै
जल्दी सें सोना मृग बनी वें, सीता केॅ ललचाबै
विवश होय मारीच स्वर्ण-मृग बनि सीता लग आबै
मृग-चर्मो के आग्रह पर पति राम मृगा पिछु धाबै
बहुत रपेटी दूर राम नें स्वर्ण मृगोॅ केॅ मारै
मरै काल रावण के बतैलोॅ लक्ष्मण नाम उच्चारै
पति पर संकट जानि सियां लक्ष्मण के तुरत पठाबै
यही बीच रावण छल करि सिय हरी के लंका लाबै
नलकूवर के शाप के कारण बेबस पड़लै
बलात्कार के बात भूलि, हौ राजी-खुशी पेॅ अड़लै
सीता खोज में रामदूत हनुमानें लंका जारै
वही क्रमोॅ में रावण सुत, अक्षय कुमार केॅ मारै
ओत्तेॅ-ओत्तेॅ कांड देखि कैकसी के चुप्पी टूटै
रावण के करतूतोॅ पर ओकरोॅ गोस्सा फिन फूटै
हय की होय छै-हय की होय छै कहि कहि हौ चिल्लाबै
रावण सम्मुख खाढ़ोॅ होय केॅ ओकरो शाप गिनाबै
बोलै, तोहें अनर्गल करि-करि शाप केॅ नेतोॅ देल्हैं
ब्रह्मा के वरदानोॅ के कटियो खियाल नैं कैल्हैं
बेदवती आरो अन्वरण्य के तोंही कथा सुनैल्हैं
आय वही शापोॅ के असगुण देखी केनां भुलैन्हैं
याद करें सीता पाबै लेॅ जनकपुरी जे गेल्है
सीता केरोॅ स्वयंवर में तों बढ़ि-चढ़ि हिस्सा लेल्हें
मुँह लटकैनें लंका घुरले बिल्कुल खाली हाथें
रामोॅ के प्रभुता आगू कोय काम नैं देलकौ माथें
हमरा लागै बेदवती सीता बनि लंका आबै
अन्वरण्य के वंशज राम में, विष्णु आबि नुकाबै
नर बानर के काट धरि वरदान तोहें जे पैले
वही काट पर देव सिनी नर-बानर बनि-बनि अैलै
सुपर्नखा के खोंटलोॅ उन्कुर पाप बनि डिड़ियैलै
खरदूषण मरी लंका जरलै, पूत भी आपनोॅ गमैलै
आभियो जल्दी चेत तों बेटा, सीता तुरत घुराबें
राम से दोस्ती करी केॅ हमरोॅ रोपलोॅ वंश बचाबें
रावण बोलै बहुत देर तोरा से भेलौॅ मइया
कहाँ छेल्हैं तखनी, जखनी तरसौं देखै तोरोॅ छइयाँ
इ सच छै की देवकुलोॅ में तोहीं पैदा करल्हैं
माल्यवान नाना के बहकैला पर सरपट दौड़ल्हैं
ब्रह्मा के कुल सें छीनी तों राक्षस कुल में देल्हैं
कत्तेॅ बातोॅ केॅ छिपाय तों सच हमरा नैं बतैल्हैं
फिन तोरा मनसूबा पर ही हरदम हम्में चललां
जखनी तोहें जेनां भी कहलेॅ हौ सभ हम्में करलां
मातृ भक्ति में माय के इच्छा पूर्ण करै ब्रत लेलां
तोरे बतैला हर राहोॅ के राही हम्में होलां
मगर बीच पन्तर में असकर आंचल छाँव निचोड़ी
जखनी तोरोॅ रहै जरूरत देल्हैं हमरा छोड़ी
आबेॅ हमरोॅ गोड़ बढ़ैलोॅ रोकला पर नै रूकतै
तोरे कारण शाप भुलैलां जे होना छै होतै
विधि के देलोॅ जे तन छै विधना केॅ एकरोॅ लेखा
तोहें कत्तोॅ माथोॅ रगड़ें टेढ़ नै होतै रेखा
तोहें बहुत सतैलै हमरा आबेॅ कथी लेॅ आभैं
जे रस्ता सें अैलोॅ छें तों वै रस्ता सें जाभैं
कहथैं रावण केरोॅ दशोमुख सरपट उल्टी गेलै
कैकसी कानीं-हँकरी तखनीं रावण लग सें हटलै
एत्तोॅ ठो अपमान सही खटवास तुरन्ते लेलकी
मौन साधि अपमान बात वें कैकर्हौ नहीं बतैलकी
मन्दोदरी सयानीं, सब टा बात सासु के जानै
यै लेली हर रोज के घटना आबी ओकरा बखानै
एकाँएकी वंश ओराबै, के जित्तोॅ, के मरलै
केकरोॅ जीत कोॅन दिन होलै हौ दिन की की भेलै
कैक दिनों तक बिस्तर पकड़ी कैकसी चिन्तन लारै
अपनोॅ जिनगी के हर पहलू वें टकटोरी केॅ निहारै
दादी सुकेशी के गोदी सें मुनिश्रेष्ठ तक जाना
दशाननों के माय बनी फिन लंका वापस पाना
केनां केनां जिनगी केॅ काटै केनां पूत चलवाबै
कहाँ चूक करतब मंे होलै सभटा बात बुझाबै
पोता कुंभ निकुंभ मरण पर रोदन भेलै जारी
फिन अतिकाय के मरण सुनी केॅ कानन भेलै भारी
कुंभकरण आरो मेघनाद के मरथैं रोदन ठानै
खटवास्है में लोर चुबाबै कफ्सी कफ्सी कानै
कैकसी केॅ हुकहुकी टा रहलै जे दिन रावा गिरलै
कानी-हँकरी के साथें ओकरो दम तखनी छुटलै
दम छूटै के वक्ती चाहै कोइयो पिलाबेॅ पानी
रक्ष वंश में कोय नैं बचलै भेलै खतम कहानी