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मन! ग्रहण करो अंतिम उपदेश / बिन्दु जी

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मन! ग्रहण करो अंतिम उपदेश।
यह देश छोड़कर अब तो जाना है निज देश॥
अब तक धोके में जो होना था सब कुछ हो गया,
पाप के बाजार में अपना खजाना खो गया।
किन्तु अब माया तथा मद-मोह में मत फूलना।
रत-दिन श्रीकृष्ण राधा के चरण मत भूलना।
श्रीकृष्ण के भजने से कटते हैं दुःख क्लेश॥
प्रार्थना ईश्वर से है सुख शांतिमय हों आप सब।
कृष्ण करुणाकर हरण कर लें हृदय के पाप सब।
‘बिन्दु” के वचनों का केवल आख़िरी यह सार है,
श्याम के सुमिरन बिना यह ज़िन्दगी बेकार है।
राम सबका है सहारा प्यारा ब्रज का नरेश॥