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करना कुछ तुझको बिहार आँखों से / बिन्दु जी

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करना कुछ तुझको बिहार आँखों से,
देखते रहो ब्रज कि भार आँखों से।
ये खड़े कदम के तले नन्द के लाला,
आ बना अनोखा नटवर भेष निराला।
जिसने भी कुछ पी लिया रूप मधु प्याला;
पल भर में ही बन गया मस्त मतवाला।
दिल खोल उठा यह बार-आँखों से।
देखते रहो ब्रज की भार आँखों से।
वैसे चाहा मोहन को गले लगाना।
मोहन मुझ से कुछ करने लगा हुआ।
मैंने ये कहा साँवले भाग मत जाना।
तुमको है मन-मंदिर में आज बिठाना।
हंस कर बोले घनश्याम यार आँखों से।
देखते रहो ब्रज कि भार आँखों से।
इस काया को बजाज की भूमि बना लो।
इस मानस को ही वृन्दावन ठहरालो।
भावना पुंज में सेवा कुञ्ज सजा लो।
राधिका भक्ति घनश्याम प्रेम पधरालो।
फिर ‘बिन्दु’ बहा दो यमुना धर आँखों से।
देखते रहो बृज की बहार आँखों से।