हमारे मन हरी सुमिरन धन भावे,
मन में बंद कारे तो उसको देख न पावे।
बहार खोल धरे तो उसको कोई नहीं चुरावे॥
घटने का तो नाम न लेवे हरदम बढ़ता जावे,
भाई बेटा संगी साथी कोई नहीं बंटावे॥
पानी चाहे जैसा बरसे उसको नहीं गलावे।
अग्नि चाहे जैसी सुलगे उसको नही जलावे।
आंधी नहीं उड़ावे उसको धरती नहीं समावे।
ऐसा आत्म ‘बिन्दु’ धन पाकर शहंशाह कहावे।
हमारे मन हरी सुमिरन धन भावे।