भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बसहु मन! मनमोहन के पाँव! / बिन्दु जी
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:10, 18 अक्टूबर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बिन्दु जी |अनुवादक= |संग्रह=मोहन म...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
बसहु मन! मनमोहन के पाँव!
पग तल भूमि रेख कुञ्जन बीच कुटीर बना।
वान विराग विचार विटप में रस पसून प्रकटाव।
तिनके सिंचन हित नैनन सों विमल ‘बिन्दु’ बरताव॥
मुझ सा नमक हराम न और।
कभी नहीं उनका गुण गाता खाता जिनका कौर।
अधम अटपटा अधिक आलसी मंडल का सिरमौर॥
स्वामी की न गुलामी करता बदनामी हर तौर।
हूँ कलंक का ‘बिन्दु’ चाहता पद नख शशि में ठौर॥