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सतगुरु शिष्य को पढ़ावै हो रामा / रामेश्वरदास

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॥चेती॥

सतगुरु शिष्य को पढ़ावै हो रामा, आतम ज्ञान को॥टेक॥
बाहर ढूँढ़न माना करावै हो, घट अंतर में चलावै हो रामा॥1॥
पंच पाप को प्रथम छोड़ावै हो, सादाचार को गहावै हो रामा॥2॥
नेत्र मूख को बंद करावै हो, दृढ़ आसन से बैठावै हो रामा॥3॥
मानस जाप को मन से जपावै हो, मानस ध्यान करावै हो रामा॥4॥
अगल-बगल से दृष्टि छोड़ावै हो, सनमुख बिन्दु धरावै हो रामा॥5॥
दोनों कान को बंद करावै हो, शब्द का भेद बतावै हो रामा॥6॥
दायें-बायें का शब्द छोडावै हो, सन्मुख शब्द को धरावै हो रामा॥7॥
शब्द धराके गुरु ने शरण लगावै हो, ‘रामदास’ शिष्य को पढ़ावै हो रामा॥8॥