भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कशमकश इतनी रही है या नहीं / पूजा श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 05:33, 21 अक्टूबर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पूजा श्रीवास्तव |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
कशमकश इतनी रही, है या नहीं
ये नहीं होता, तो ये होता नहीं
बाबुजी से ये शिकायत रह गयी
आपने सब कुछ अभी बाँटा नहीं
क्या दरख्तों में अभी तक साँस है
क्यूँ परिंदा छोड़कर जाता नहीं
आईने से सीखना है संगदिली
टूट तो जाता है पर रोता नहीं
फर्क छोटे और बड़े का भूलना
कायदे से हमने ये सीखा नहीं
घर के पर्दों में भी डर है आज तक
माँ अगर कह दे तो ये उड़ता नहीं
बेटियों को मारने वालों सुनो
राम न हों गर हों कौशल्या नहीं
होंगी घर की जड़ में ही चिंगारियाँ
खुद ब खुद रिश्ता कहीं जलता नहीं