Last modified on 21 अक्टूबर 2016, at 21:49

किरिन एक मुट्ठी भरि / जीवकान्त

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:49, 21 अक्टूबर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जीवकान्त |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatMaithil...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

आँकुरक धक्का अछि
सहे-सहे फाटि रहल अछि
बदामक मोट छाल
थोड़-थोड़ देखाइत अछि
पानिक एक पातर तह
दाना सभक बीचमे
चमकैत पानिक तह
छू कए करैत अछि
खोइंचाकेँ कोमल
जगबैत अछि, निन्नसँ
खोलैछ ओकर पिपनी
दैत अछि, आँकुरकेँ बहरएबाक वेग
पानिकेँ चमकौने अछि
सूर्यक किरिन मुठ्ठी भरि
दोग दने ओ पैसल अछि अन्नमे
आँकुरक कोंढ़मे
आ सहे-सहे दीप्त करैछ ओकर जीवन