भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अपने इन छोटे गीतों को / कृष्ण मुरारी पहारिया
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 05:11, 26 अक्टूबर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कृष्ण मुरारी पहारिया |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
अपने इन छोटे गीतों को
हवन कुंड में डाल रहा हूँ
जैसे भी हो सर्जन की
अपनी पीड़ा पाल रहा हूँ
मेरा यज्ञ अनवरत चलता
भले न कोई साथ दे रहा
अग्नि नहीं यह बुझी अभी तक
कहीं न कोई हाथ दे रहा
अपने ही कर जला हवन में
मैं अब तक बेहाल रहा हूँ
भाव बने मेरे वसुधारा
छंदों की समिधा कर डाली
प्राणों की हविष्य लेकर मैं
सज़ा चुका हूँ अपनी थाली
मैं ख़ुद ही अपना जीवन हूँ
ख़ुद ही अपना काल रहा हूँ