कौन सी मदिरा पिलाई पीर ने!
आँख मेरी हो गयी इतनी रसीली,
बात मेरी हो गयी इतनी नशीली,
पास जो आता, न जाना चाहता है
ले लिया जग मोल एक फ़कीर ने!
कौन-सी मदिरा पिलाई पीर ने!
देह दर्पण-सी दमकने लग गयी है,
सौ दियों की ज्योति मन में जग गयी है,
प्राण पर जो कालिमा वाकी बची थी
पोंछ ली कब, क्या पता, किस चीर ने!
कौन सी मदिरा पिलाई पीर ने!
मैं नशे में चूर होकर भी सजग हूँ,
आँसुओं के साथ रह भी अलग हूँ,
चेतना सोती नहीं अब रात में भी
कर दिया आज़ाद हर जंजीर ने!
कौन सी मदिरा पिलाई पीर ने!